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खुश हुए मार कर ज़मीरों को / शेरजंग गर्ग

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खुश हुए मार कर ज़मीरों को।
फिर चले लूटने फ़क़ीरों को।

आज राँझे भी क़त्ल में शामिल,
शर्म आने लगी है हीरों को।

रास्ते साफ़ हैं, बढ़ो बेख़ोफ़,
कैसे समझाए रहगीरों को!

दिल में नफरत की धूल गर्द जमी
हम सजाते रहे शरीरों को।

कृश्न के देश में सुशासन जन,
कब तलक यों हरेंगे चीरों को?

चलती चक्की को देखकर हँसते,
हाय, क्या हो गया कबीरों को।

लूट, नफ़रत, तनातनी, हिंसा,
कब मिटाओगे इन लकीरों को?