गठरी में चोर / देवेन्द्र आर्य
तोरी गठरी में लागा चोर
मुसाफ़िर सोयो न !
माथ पसीना गार के सींच्यो
पानी जड़-पाताल से खीच्यो
तपती धूप ठिठुरती सर्दी, खेत में जान-परान उलीच्यो
फ़सल कटे पर ठग-बटमारन की हुई गई बटोर
तोरी गठरी में लागा चोर
मुसाफ़िर सोयो न !
आठ बरिस की उमिर से लागा
घर-गिरहस्ती सुई में तागा
मुरझ गए अँखुआए सपने, जरिके रहिगा पेट अभागा
उमिर की पोखर कींचड़ हुई गई
देह भई कमज़ोर
तोरी गठरी में लागा चोर, मुसाफ़िर सोयो न !
दादा खटे सुखी हो बेटवा
बेटवा खटे भरे ना पेटवा
दुइ हाथन की अपनी कमाई
लूटे खातिर जग-पेटकटवा
जाग मुसाफिर जाग
ठगिनिया नींद रही झकझोर
तोरी गठरी में लागा चोर, मुसाफ़िर सोयो न !
इ गठरी मेहनत की गठरी
इ गठरी हिम्मत की गठरी
अन्धियारे में सरक न जाए
नहीं है ये रिश्वत की गठरी
आँख झपे सगरो अन्धियारा, नींद से जगे भोर
तोरी गठरी में लागा चोर, मुसाफ़िर सोयो न !