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गप्प सुनो / गंगासहाय 'प्रेमी'
Kavita Kosh से
हाऊ-हाऊ हप्प,
एक सुनाऊँ गप्प।
बाबा जी की दाढ़ी,
झरबेरी की झाड़ी।
उस दाढ़ी के अंदर,
घुसे बीसियों बंदर।
करते खों-खों, खों-खों।
यूँ ही बीते बरसों।