भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ग़ज़ल / भारत यायावर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अपने वतन को शोलों के हवाले कर दिया
आपने खुद को गद्दारों के हवाले कर दिया

जो गए बाज़ार तो लाए वहाँ से सब हुज़ूर
अपने घर में लौटकर घर के हवाले कर दिया

ख़ुदपरस्ती बढ़ गई, अपने में ऐसे खो गए
चाहकर भी बढ़ न पाए, पतन के हवाले कर दिया

बस्तियाँ अपनी बसाकर आप उसमें खो गए
चल न पाए दूर तक, खुद के हवाले कर दिया

एक सच्ची बात तक कह न पाए अब तलक
और अपनी बात झूठों के हवाले कर दिया