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गाँव की गुडिया / शैलजा पाठक
Kavita Kosh से
उसकी आँखों से
एक गरम नदी निकलती है
एक ठंढी साँझ का
उदास सूरज
डूबता है उसकी
गहरी आँखों में
बेअसर दस्तकों से
नही कांपते दरवाजे
गीतों के धुन पर
नहीं लरजते होठ
सुना है एक रंगीन
शहर में भेज दी गई
गाँव की गुडिया
अपनी परछाइयों में छूती है
गाँव का पीपल
जीने की कोशिश में
मुस्कराती है
और मर जाती है
अगले ही पल ...