भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गीतावली उत्तरकाण्ड पद 11 से 20 तक/ पृष्ठ 2

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

(12)
राग भैरव
प्रातकाल रघुबीर-बदन-छबि चितै, चतुर चित मेरे |
होहिं बिबेक-बिलोचन निरमल सुफल सुसीतल तेरे ||

भाल बिसाल बिकट भ्रुकुटी बिच तिलक-रेख रुचि राजै |
मनहुँ मदन तम तकि मरकत-धनु जुगुल कनक सर साजै ||

रुचिर पलक लोचन जुग तारक स्याम, अरुन सित कोए |
जनु अलि नलिन-कोस महँ बन्धुक-सुमन सेज सजि सोए ||

बिलुलित ललित कपोलनिपर कच मेचक कुटिल सुहाए |
मनो बिधुमहँ बनरुह बिलोकि अलि बिपुल सकौतुक आए ||

सोभित स्रवन कनक-कुण्डल कल लम्बित बिबि भुजमूले |
मनहुँ केकि तकि गहन चहत जुग उरग इंदु प्रतिकूले ||

अधर अरुनतर, दसन-पाँति बर, मधुर मनोहर हासा |
मनहुँ सोन सरसिज महँ कुलिसनि तड़ित सहित कृत बासा ||

चारु चिबुक, सुकतुण्ड बिनिन्दक सुभग सून्नत नासा |
तुलसिदास छबिधाम राममुख सुखद, समन भवत्रासा ||