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गीतावली उत्तरकाण्ड पद 11 से 20 तक/ पृष्ठ 8

(18)
राम-हिण्डोला

राग मलार
आली री! राघोके रुचिर हिण्डोलना झूलन जैए ||
फटिक-भीति सुचारु चहुँ दिसि, मञ्जु मनिमय पौरि |
गच काँच लखि मन नाच सिखि जनु, पाँचसर-सुफँसौरि ||

तोरन-बितान-पताक-चामर-धुज सुमन-फल घौरि |
प्रतिछाँह-छबि कबि-साखि दै प्रति सों कहै गुरु हौं रि ||

मदन-जयके खम्भ-से रचे खम्भ सरल बिसाल |
पाटीर-पाटि बिचित्र भँवरा बलित, बेलन लाल ||

डाँड़ो कनक कुङ्कुम-तिलक-रेख-सी मनसिज-भाल |
पटुली पदिक रति-हृदय जनु कलधौत कोमल माल ||

उनये सघन घनघोर, मृदु झरि सुखद सावन लाग |
बगपाँति, सुरधनु, दमक दामिनि हरित भूमि-बिभाग ||

दादुर मुदित, भरे सरित-सर, महि उमग जनु अनुराग |
पिक-मोर-मधुप-चकोर-चातक-सोर उपबन बाग ||

सो समौ देखि सुहावनो नवसत सँवारि-सँवारि |
गुन-रूप-जोबन-सींव सुन्दरि चलीं झुण्डनि झारि ||

हिण्डोल-साल बिलोकि सब अंचल पसारि-पसारि |
लागीं असीसन राम-सीतहि सुख-समाजु निहारि ||

झूलहिं, झुलावहिं, ओसरिन्ह गावैं सुहो, गौण्डमलार |
मञ्जीर-नूपुर-बलय-धुनि जनु काम-करतल-तार ||

अति मुचत स्रमकन मुखनि, बिथुरे चिकुर, बिलुलित हार |
तम तड़ित उडुगन अरुन बिधु जनु करत ब्योम- बिहार ||

हिय हरषि, बरषि प्रसून निरखति बिबुध-तिय तृन तूरि |
आनन्द-जल-लोचन, मुदित मन, पुलक तनु भरि पूरि ||

सब कहहिं, अबिचल राज नित, कल्यान-मङ्गल भूरि |
चिर जियौ जानकिनाथ जग तुलसी-सजीवनि-मूरि ||