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गीतावली उत्तरकाण्ड पद 1 से 10 तक/पृष्ठ 9
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सखि! रघुबीर मुख-छबि देखु |
चित्त-भीति सुप्रिति-रङ्ग सुरूपता अवरेखु ||
नयन-सुषमा निरखि नागरि! सफल जीवन लेखु |
मनहुँ बिधि जुग जलज बिरचे ससि सुपूरन मेखु ||
भ्रकुटि भाल बिसाल राजत रुचिर-कुङ्कुम-रेखु |
भ्रमर द्वै रबिकिरनि ल्याए करन जनु उनमेखु ||
सुमुखि! केस सुदेस सुन्दर सुमन-सञ्जुत पेषु |
मनहुँ उडुगन-निबह आए मिलन तम तजि द्वेषु ||
स्रवन कुण्डल मनहु गुरु-कबि करत बाद बिसेषु |
नासिका, द्विज, अधर जनु रह्यो मदनु करि बहु बेषु ||
रूप बरनि न सकत नारद-सम्भु, सारद-सेषु |
कहै तुलसीदास क्यों मतिमन्द सकल नरेषु ||