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गीतावली पद 91 से 100 तक/पृष्ठ 2

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092.रागटोड़ी

मुनि-पदरेनु रघुनाथ माथे धरी है |
रामरुख निरखि लषनकी रजाइ पाइ,
धरा धरा-धरनि सुसावधान करी है ||

सुमिरि गनेस-गुर, गौरि-हर भूमिसुर,
सोचत सकोचत सकोची बानि धरी है |
दीनबन्धु, कृपसिन्धु साहसिक, सीलसिन्धु,
सभाको सकोच कुलहूकी लाज परी है ||

पेखि पुरुषारथ, परखि पन, पेम, नेम,
सिय-हियकी बिसेषि बड़ी खरभरी है |
दाहिनोदियो पिनाकु, सहमि भयो मनाकु,
महाब्याल बिकल बिलोकि जनु जरी है ||

सुर हरषत, बरषत फूल बार बार,
सिद्ध-मुनि कहत, सगुन, सुभ घरी है |
राम बाहु-बिटप बिसाल बौण्ड़ी देखियत,
जनक-मनोरथ कलपबेलि फरी है ||

लख्यो न चढ़ावत, न तानत, न तोरत हू,
घोर धुनि सुनि सिवकी समाधि टरी है |
प्रभुके चरित चारु तुलसी सुनत सुख,
एक ही सुलाभ सबहीकी हानि हरी है ||