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गीतावली लङ्काकाण्ड पद 16 से 20 तक/पृष्ठ 5

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 छेमकरी! बलि, बोलि सुबानी |
  कुसल छेम सिय राम-लषन कब ऐहैं, अंब! अवध रजधानी ||

  ससिमुखि, कुङ्कुम-बरनि, सुलोचनि, मोचनि सोचनि बेद बखानी |
  देवि! दया करि देहि दरसफल, जोरि पानि बिनवहिं सब रानी ||

  सुनि सनेहमय बचन, निकट ह्वै, मञ्जुल मण्डल कै मड़रानी |
  सुभ मङ्गल आनन्द गगन-धुनि अकनि-अकनि उर-जरनि जुड़ानी ||

  फरकन लगे सुअंग बिदिसि दिसि, मन प्रसन्न, दुख-दसा सिरानी |
  करहिं प्रनाम सप्रेम पुलकि तनु, मानि बिबिध बलि सगुन सयानी ||

  तेहि अवसर हनुमान भरतसों कही सकल कल्यान-कहानी |
  तुलसिदास सोइ चाह सजीवनि बिषम बियोग ब्यथा बड़ि भानी ||