भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गीतावली लङ्काकाण्ड पद 6 से 10 तक/पृष्ठ 5
Kavita Kosh से
(10)
रागकेदारा
कौतुक ही कपि कुधर लियो है |
चल्यो नभ नाइ माथ रघुनाथहि, सरिस न बेग बियो है ||
देख्यो जात जानि निसिचर, बिनु फर सर हयो हियो है |
पर्यो कहि राम, पवन राख्यो गिरि, पुर तेहि तेज पियो है ||
जाइ भरत भरि अंक भेण्टि अंक भेण्टि निज, जीवन-दान दियो है |
दुख लघु लषन मरम-घायल सुनि, सुख बड़ो कीस जियो है ||
आयसु इतहि, स्वामि-सङ्कट उत, परत न कछू कियो है |
तुलसिदास बिदर्यो अकास, सो कैसेकै जात सियो है ||