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गीले गीले जौ का पीसना री / हरियाणवी
Kavita Kosh से
हरियाणवी लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
गीले गीले जौ का पीसना री
नीका पीसूं उड़ उड़ जाय, मोटा पीसूं कोई न खाय
चौमासा सावन आ गया री, अरी मोरी मां री
इतना आटा मैं पीसा री जितना नदियां रेत
चौमासा सावन आ गया री, अरी मोरी मां री
इतनी रोटी मैं पोयी री जितने पीपल पात री
चौमासा सावन आ गया री, अरी मोरी मां री
इतने चावल मैं कुट्टे री जितने समंदर मोतियां
चौमासा सावन आ गया री, अरी मोरी मां री
रोटी रोटी बाट ली री रह गई रोटी एक री
छोटा देवर लाडला री वह भी ले गया खोस री
चौमासा सावन आ गया री, अरी मोरी मां री
कड़छी कड़छी चावल बटा लिये री रह गई कड़छी एक री
छोटी नणदल लाडलो री वह भी ले गई खोस री
चौमासा सावन आ गया री, अरी मोरी मां री