भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गैरा बिटि सैंणा मा / धनेश कोठारी
Kavita Kosh से
हे द्यूरा!
स्य राजधनि
गैरसैंण कब तलै
ऐ जाली?
बस्स बौजि!
जै दिन
तुमरि-मेरि
अर
हमरा ननतिनों का
ननतिनों कि
लटुलि फुलि जैलि
शैद
वे दिन
स्या राज-धनि
तै गैरा बिटि
ये सैंणा मा
ऐ जाली।