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घड़ी री घड़ी! / रमेश तैलंग
Kavita Kosh से
घड़ी री घड़ी!
नींद से न जगा।
ट्रिन-ट्रिन कर चुकी बहुत,
अब चुप लगा।
छुट्टी का दिन है
स्कूल नहीं जाना,
छोड़ कभी तो
रोज-रोज ये सताना,
सुबह-सुबह करती
क्यों किरकिरा मजा?
पूरे दिन टिक-टिक
टिक-टिक-टिक करती,
पलभर भी क्या तेरी
आँख नहीं लगती?
खाती है तू ऐसी
कौन-सी दवा?
सोने की दुश्मन!
मुझको ये बता।