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घाटी के पार / राजा अवस्थी
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					संध्या के नभ को
सिन्दूरी उपहार। 
घाटी के पार। 
सपनों की मेड़ों पर
कस्तूरी गंध लिये; 
पौध नहीं पनपी
विश्वासी सम्बन्ध लिये; 
 जीना है, छाती पर
 रखकर अंगार। 
बंद द्वार के भीतर
मन को हुलसा जातीं; 
पद चापें चुपके से
देहरी तक आ जातीं; 
 स्मृतियों की बिजली ले
 मोहक झंकार। 
 घाटी के पार। 
संतापों के तकिये
सिरहाने रख सोना; 
मेहनत के खेतों में
खुशबू के घर बना; 
 सुख-दुख के फल सारे
 मन को स्वीकार। 
 घाटी के पार।
	
	