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घिस्से ही बाकी / राजा अवस्थी
Kavita Kosh से
सम्बन्धों के महल
प्यार के
किस्से ही बाकी।
बेरौनक—सी चुप्पी
ठिठके
हिस्से ही बाकी।
यदा-कदा
इसकी दीवारें ही
रो लेती हैं;
धूल पलस्तर
पर की
आँसू से धो लेती हैं;
विस्तृत गलियारे-घर
उजड़े
हिस्से ही बाकी।
पसरे सन्नाटों का छाया
राज
अकंटक है;
चहल-पहल को
ओसारे ने
समझा झंझट है;
आवाजाही
पंगत-बैठक
किस्से ही बाकी।
शिखर विवश है
मुँह पर अपने
ताला डाल रखा;
अनियंत्रित
झंझाड़-झाड़
छाती में पाल रखा;
बूढ़ी काया
औलादों के
घिस्से ही बाकी।