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चटरबण्टू / पढ़ीस
Kavita Kosh से
तुम कहाँ ति बनि-ठनि आयउ लाला,
चटपटचंद चटर-बण्टू।
युहु ट्वाना-टटका पढ़ि आयउ का,
चटपटचंद चटर-बण्टू।
द्याखति मा ददुआ नीक-नीक मुलु,
बिसु-रस-भरे कनक-घट हउ।
नस-नस मा माहुरू डँसा चह्यउ तुम,
चटपटचंद चटर-बण्टू।
यह खुबयि मुरहटी<ref>शैतानी, बदमाशी</ref> बूँकति हउ का,
हउ तउ काल्हिन के मुरहा!
बुढ़उ खाँसे उयि जागे द्याखउ।
चटपटचंद चटर-बण्टू।
तुम लाखु तना ते झरपट्टउ<ref>झपटना</ref> का,
ठाढ़यि रहिहउ मुँहु बाये।
अस अण्टा-चित्तु-गफील<ref>गलतफ़मी में रहने वाला, खब्तुल्हवास</ref> गिरउ तुम,
चटपटचंद चटर-बण्टू।
तुम अयिस ‘पढ़ीस’ ति अइँठे हउ,
जिहि का च्याला संसारू भवा।
अब अपनि पढ़ीसी चाटउ चमकू,
चटपटचंद चटर-बण्टू।
शब्दार्थ
<references/>