भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चमाळीस / प्रमोद कुमार शर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

टीटूड़ी
तू जणै बोलती म्हारै घर पराÓकर
उडारी भरती जावै दूर अकासां
उण बगत मुळकै म्हारी सांसा
हुवै पतियारो
अेकलो नीं हूं सबद मांय
हुवै भलांई च्यारूं पासै
-लासां!