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चराग़ ए राह जलाया था रौशनी के लिए / सिया सचदेव

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चराग़ ए राह जलाया था रौशनी के लिए
उजाला हो न सका फिर भी हर किसी के लिए

जुनून-ए-इश्क़ न बह बन के खून के आंसू
अभी लहू की ज़रूरत है ज़िन्दगी के लिए

हर एक शख़्स को दिल में जगह नहीं मिलती
यहाँ तो होती है इज्ज़त किसी किसी के लिए

ये उम्र ग़म के सहारे गुज़र तो जाती है
मगर ख़ुशी भी तो लाज़िम है आदमी के लिए

किसी को क्या है ग़रज़ तुझको क़त्ल करने की
तेरा ग़रूर ही काफी है ख़ुदकुशी के लिए

झुका सकेगा मेरा सर सिया नहीं कोई
अगर झुकेगा तो बस रब की बंदगी के लिए