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चल री मेरी मोटर कार / प्रकाश मनु
Kavita Kosh से
नदियाँ-पर्वत करती पार,
चल री मेरी मोटर कार।
दूर बहुत मुझको जाना है,
रस्ता भी तो अनजाना है।
दुनिया घूम-घामकर आऊँ,
सब पर अपना रोब जमाऊँ।
दिल्ली, बोम्बे या कलकत्ता,
चल री मोटर, चल अलबत्ता।
बढ़ा-बढ़ा अपनी रफ्तार,
चल री मेरी मोटर कार!