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चलता है इस तरह (4) / हरीश बी० शर्मा
Kavita Kosh से
जीवन फिर चलता रहता है
प्रेम फिर भी पलता रहता है
मेरी तनख्वाह
उसका घर
पट्टा गले में पड़ा क्या दुख देता है
ज्यादा बात बढ़े तो
बच्चों के बहाने बतिया लेते हैं
बरस बीत जाते हैं।