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चले भी आओ धीरे-धीरे / सुधेश
Kavita Kosh से
चले भी आओ धीरे-धीरे।
नहीं कोई मुझे जल्दी है
पर ठहरी उमर चल दी है
मन की राधा तुम्हें ही पुकारे
अब आओ भी यमुना तीरे।
बीती सारी उमर खोजते ही
सोच कर सोचते-सोचते ही
मेरी झोली में पत्थर क्यों आए
मैं तो चुनता रहा मोती हीरे।
कभी ऐसी हवा भी चलेगी
जब कि मन की कली भी खिलेगी
धीरे-धीरे उड़ेगी ये ख़ुशबू
धीरे-धीरे चले समीरे।