भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चलो सूरमा रणभूमि में / दयाचंद मायना
Kavita Kosh से
चलो सूरमा रणभूमि में, है काटना कटना
हिन्द के वीर दिलेरों शेरों, पीछे ना हटना...टेक
हक आपणे पै लड़ो मरो, कायदे कानून से
भारत माँ की प्यास बुझा दो अपणे खून से
बर्मा शहर रंगून से चल दिल्ली डटना...
भारत म्हं हाम चालैंगे, हां चालैंगे, हां चालैंगे
शेर के दम चालैगें, हां चालैंगे, हां चालैंगे
रफल, तौब और बम्ब चालैंगे, हो धरती का फटना...
गूँज उठा आसमान सारा, दिल की किलकार से
शेर कभी ना डरा करैं, दुश्मन की मार से
हिम्मत और हार से, हो वीरों का छटना...
कह ‘दयाचंद’ इसे वीरां का, निसदिन प्रचार हो
सुणकै कथा बोस की, खुश नर और नार हो
म्हारे हिन्द का बेड़ा पार हो, मन ओम नाम रटना...