भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चाँद कुछ ऐसे मुस्कुराया है / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
चाँद कुछ ऐसे मुस्कुराया है
चाँदनी में नहा के आया है
झील दर्पण में देखता मुखड़ा
दाग़ कुछ और उभर आया है
जो था बाहों में झूलता मेरी
आज उस ने मुझे उठाया है
टूट जब पांव की गयी बेड़ी
याद तब आसमान आया है
खोल कर पींजरा उड़ा पंछी
आज आकाश ने लुभाया है
डुबकियाँ मत लगा समन्दर में
साथ लहरों ने कब निभाया है
गुनगुना कर भ्रमर ने उपवन में
बन्द कलियों को भी खिलाया है