भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चाय-5 / नूपुर अशोक
Kavita Kosh से
					
										
					
					कभी किसी
और कभी
किसी और के नाम पर
दूर होते गए हैं हम
छोटी-छोटी खुशियों से, 
इस चाय की तरह
जिसमें रह गई हैं
चाय के नाम पर
अब बस चंद पत्तियाँ, 
चलो न, 
वापस लौटें उसी भरपूर वक़्त में
और भर लें एक बार फिर
इस पानी-पानी जीवन में
अदरक जैसी तेज़ी
इलायची जैसी खुशबू
चीनी जैसी मिठास
और दूध जैसा प्यार!
	
	