भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चित्रकार दोस्तों के नाम / कुमार विकल
Kavita Kosh से
तुम मुझे रंगों की दुनिया में ले चलो
मैं तुम्हें शब्दों के मेले में ले चलता हूँ
शब्द केवल शब्द नहीं होते
उनके पीछे बहुत से लोग होते हैं
रंग—बिरंगे कपड़ों वाले लोग
लेकिन उनके कपड़ों का सबसे मुखर रंग
मिट्टी का रंग होता है,
मिट्टी जिससे सारे रंग जन्म लेते हैं.
तुम मुझे अपने रंगों की दुनिया में ले चलो
जहाँ मेरी माँ की रामायण पढ़ती आवाज़ ले जाती है
क्या तुम मुझे मेरी माँ की आवाज़ का रंग बता सकते हो?
जबकि मैं तुम्हारे रंग को एक आवाज़ दे सकता हूँ
आवाज़—
जो मिट्टी की गंध से आती है
और मेरी कविताओं में
तुम्हारे कैनवस पर बिखरे रंगों की तरह फैल जाती है
तुम मेरे शब्दों को रंग दो
मैं तुम्हारे रंगों को शब्द दूँगा.