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चीख़े मन का मोर / अवनीश सिंह चौहान
Kavita Kosh से
कोई अपना
छोड़ साथ यों
चला गया किस ओर
टप-टप-टप-टप
बरसे पानी
टूटा सपन सलोना
अंदर-अंदर
तिरता जाऊँ
भींगा कोना-कोना
चीख़ रहा है
पल-छिन छिन-पल
अपने मन का मोर
किसने जाना
कहाँ तलक
उड़ पाएगी गौरैया
किसने जाना
कहाँ और कब
मुड़ जाएगी नैया
जान गए भी
तो क्या होगा
समय बड़ा है चोर
पास हमारे
आओगे कब
साथी साथ निभाने
हाथ पकड़कर
ले चलना तब
मुझको किसी ठिकाने
मिलन हमारा
ले आयेगी
खुशियों की तब भोर