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चेहरा / नवनीत पाण्डे
Kavita Kosh से
मैंने देखा है अंधेरा
जानता हूं अंधेरे को
इसीलिए
भागता हूं अंधेरे से
नहीं चाहता अंधेरा
अंधेरे में खो जाता है चेहरा
चेहरा
मेरा, तुम्हारा, किसी का भी
इसी चेहरे के लिए तो आदमी
सोता है जागता है
रात-दिन भागता है
जीता है, मरता है
धुरी पर चलता है
अंधेरे का भूत
जब चेहरे पर उतरता है
अंधियाकर आदमी
आदमी से डरता है