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चैन इस दिल को कहीं आता नहीं है / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
चैन इस दिल को कहीं आता नहीं है
प्यार के नग़मे कभी गाता नहीं है
झोंपड़ा था कम नहीं कोई महल से
बिन तुम्हारे महल भी भाता नहीं है
चाँद छूने की तमन्ना हर लहर को
हाथ में पर चाँद मुस्काता नहीं है
चिट्ठियाँ जिस प्यार से लिखते कभी थे
वो मज़ा मैसेज में अब आता नहीं है
दिन बुरे हों तो भुला देते हैं अपने
मुफ़लिसों से तो कोई नाता नहीं है
छोड़ दुनियाँ को चला जाता जहाँ से
फिर उसे कोई बुला पाता नहीं है
चार दिन की चाँदनी है फिर अँधेरा
सच यही अब कोई समझाता नहीं है