भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

छत के किसी कोने में / सुकीर्ति गुप्ता

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

छत के किसी कोने में

अटकी वह बूंद

टीन पर ‘टप्प’ गिरी

समय के अंतराल पर

गिरना जारी है उसका

लय-सीमा बंधी वह

गिरने के बीच

प्रतीक्षा दहला देती है

कि अब गिरी…अब गिरी.

वर्षा थम चुकी है

छत से बहती तेज धार

एकदम चुप है

पर यह धीरे-धीरे संवरती

शक्ति अर्जित कर

गिरती है ‘टप्प’ से