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छप्पर ऊपर कागा बोलै / अंगिका लोकगीत
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♦ रचनाकार: अज्ञात
दादी अपनी पोती के लिए जोग का मोल-भाव करना नहीं जानती और उसका यह भी विश्वास है कि मेरी अबोध बेटी अभी तक कुछ नहीं जानती। इस गीत में शुभ-सूचक काग की बोली का भी उल्लेख हुआ है। काग की बोली से प्रिय के आगमन की सूचना मिलती है। ‘बिलौकी’ में प्रायः स्त्रियाँ गाली और झूमर गाया करती हैं।
छप्पर ऊपर कागा बोलै।
कागा बोलै अमोल<ref>अनमोल</ref> हे॥1॥
दादा महल में जोग बिकै छै<ref>बिकता है</ref>।
दादी मोल<ref>मोल-भाव करना</ref> नै<ref>नहीं</ref> जानै हे॥2॥
हमरी कवन बेटी कुछुओ<ref>कुछ भी</ref> नी<ref>नहीं</ref> जानै।
राजा घरो<ref>घर की</ref> के रानी हे॥3॥
शब्दार्थ
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