आकाश में
सूरज टहल रहा है
हरे खेतों के साथ
धूप गा रही है लोकगीत।
मैं न खेत-सा ताज़ा हूँ
न धूप-सा प्रसन्न!
बस
छिपी आँखों से
सूरज को बताता रहा
अपनी व्यथा।
आकाश में
सूरज टहल रहा है
हरे खेतों के साथ
धूप गा रही है लोकगीत।
मैं न खेत-सा ताज़ा हूँ
न धूप-सा प्रसन्न!
बस
छिपी आँखों से
सूरज को बताता रहा
अपनी व्यथा।