भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
छीज रहे वे / राजेन्द्र जोशी
Kavita Kosh से
संस्कृति को म्लान करते
समझ को बदलते
परम्पराओं को पलटते
भरोसे से खिलवाड़ करते
बदलाव के नाम पर
हवस के रास्ते
संस्कृति के गहरे आशय
दरकिनार करते
दिशा को बदल रहे है
संस्कृति को छीज रहे वे
पूरे दलबल के साथ
टी.वी. मीडिया