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छुपेगी बात कब तक / गोविन्द राकेश

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छुपेगी बात कब तक
रहेगी रात कब तक

समेटें अपनी चादर
बटे ख़ैरात कब तक

संभालो अपने घर तुम
रहें तैनात कब तक

लुटी सारी तिजोरी
रहे इफ़रात कब तक

कभी तो सुल्ह कर लो
अजी शह मात कब तक