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छेद / नवनीत पाण्डे
Kavita Kosh से
रह गया छेद
सूनी दीवार पर
बरसों से गड़ी कील
उखड़ गई झटके से
ठोकरें खाने लगा
इधर-उधर फ़्रेम खाली
बिखर बिखर गए कांच
स्मृतियों की तस्वीर के
कह गया कितना कुछ
हवा का वह एक झौंका
किरकिरी सा रहा चुभता
दीवार में वह छेद एक..