भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

छोटे लोग / आनंद कुमार द्विवेदी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कितनी
रंगीन महफ़िल थी यार !
शायरी और शबाब का दौर..
मगर इसमें भी
'उस' साले ने
आलू, प्याज
रसोई गैस के बढ़े दाम...घुसेड़ दिए
उफ्फ्फ...
ये छोटे लोग न
कभी बड़ा
सोंच ही नही सकते