भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जनता की सेवा में / गोपाल कृष्ण शर्मा 'मृदुल'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जनता कि सेवा में जाने कितना दूध-दही।
लिखो लाभ का पूरा ब्योरा, छोटी पड़े बही।
तीन साल में तीस गुना धन,
सब भौचक्के हैं।
ताक-झाँक करते फिरते जो,
चोर-उचक्के हैं।
करें विरोध
कहें नेता जी है परवाह नहीं॥
बना रहे जन-तंत्र और
यह जनता बनी रहे।
माया-मोह न छूटे इसका,
प्रण की धनी रहे।
कोर-कसर पूरी कर लेंगे
आगे रही-सही।
यह कलयुग की कामधेनु
जो माँगो देती है।
मन में करो कामना,
यह पूरी कर देती है।
इसके जैसा दाता-दानी,
कोई और नहीं॥