अनुचित करेंगे नहीं,
अनुचित सहेंगे नहीं!
अधिकार-मद-मत्त
सत्ता-विशिष्टो !
तुम्हारी सफल धूर्तता
और चलने न देंगे।
परलोक
या
लोक-कल्याण के नाम पर
व्यक्ति को
और छलने न देंगे।
मानव
अनाचार-नरकाग्नि में
अब दहेंगे नहीं।
स्वैरवर्ती
निरंकुश
नये विश्व में
शेष
निश्चित रहेंगे नहीं।