भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जब भी कोई पैकर देखो / भरत दीप माथुर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जब भी कोई पैकर देखो
पहले उसके तेवर देखो

मंज़र तक जाने से पहले
मंज़र का पसमंज़र देखो

जीने का है एक सलीक़ा
अगले पल में महशर देखो

जिसकी छः-छः औलादें हैं
वो वालिद है बेघर देखो

जिस मिट्टी में होश सँभाला
उसमें अपना मगहर देखो

पहले सूरत देखो उसकी
फिर हाथों के पत्थर देखो

जिस रस्ते पर चला कबीरा
उस रस्ते पर चलकर देखो