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जब हम तुम मिले-3 / वेणु गोपाल

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ज्ब हम-तुम मिलते हैं
तो ऎसा लगता है कि 'कहाँ जाना है' भूल

हम
बीच में ही
किसी अजनबी स्टेशन पर उतर पड़े हैं। और
हमें वहाँ तक लाने वाली गाड़ी
जा चुकी है

हमरा मिलना
अक्सर यों ही बीतता है
कि या तो पटरियों को घूरते रहो
और उन्हीं के सहारे क्षितिज को--
या पटरियों की ओर न देखने में मुब्तिला रहो
और इसलिए क्षितिज को भी नहीं--

और पटरियों और क्षितिज के बीच
वह
अजनबी स्टेशन
हमेशा ही अजनबी बना रहता है। हमारे लिए।

जबकि
उतरते हम
उसी जाने-पहचाने स्टेशन पर हैं
हर बार।

जब भी हम तुम मिलते हैं।

रचनाकाल : 03 अप्रैल 1971