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जरीब गिरा खन / अनिरुद्ध नीरव
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खेत में
जरीब गिरा खन
काँप-सा गया
बूढ़े हरिया का मन
पटवारी पंच और
तीन-तीन बेटे
सब-सब अपने मन में
आग कुछ समेटे
चार पेड़ महुआ
छह क्यारी की बात नहीं
बँटने को है अपनापन
बड़का, मंझला या फिर
छोटका अपनाएगा
सोच रहा है ख़ुद
किसके हिस्से जाएगा
उसके हिस्से में
अब थाली भर भात
और
बहुओं के सूप भर वचन ।