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ज़ईफ़ सचमुच डरे हुए हैं / कैलाश झा 'किंकर'
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ज़ईफ़ सचमुच डरे हुए हैं
इसीलिए चिड़चिड़े हुए हैं।
नहीं तजुर्बों की आज रहमत
ज़ुबां पर ताले जड़े हुए हैं।
क़दम-क़दम पर है बदगुमानी
नयन-नयन बटखरे हुए हैं।
ज़मीर सोया हुआ अगर है
नहीं हैं ज़िन्दा मरे हुए हैं।
गयी ज़वानी कभी न लौटी
बुढ़ापे से अधमरे हुए हैं।
दिखाई राहें जिन्हें वही तो
डगर को रोके खड़े हुए हैं।