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ज़िंदगी इस तरह बिताना है / सिया सचदेव
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ज़िंदगी इस तरह बिताना है
अश्क पीना हैं मुस्कुराना हैं
आज फिर उसके पास जाना है
एक रूठे को फिर मानना है
हो के औरों के दरद-ओ-ग़म में शरीक
सब का ग़म अपना ग़म बनाना है
सिर्फ अपने गले लगे तो क्या
गैर को भी गले लगाना है
दर्द में कोइ मेरे साथ नहीं
साथ खुशियों में यह ज़माना है
जिस्म पर सर रहे, रहे न रहे
झूठ को जड़ से ही मिटाना हैं
क्यों सिया ज़ख्म चाहती हो नया
अपनी हिम्मत को आज़माना है?