भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ज़िन्दगी अपनी हुई है मैल कानों की / माहेश्वर तिवारी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चीख़ बनते जा रहे
हम सब खदानों की
हो गए हैं शोकधुन
बजते पियानो की ।

कल तलक सुनते रहे जो
आज बहरे हैं
आँसुओं के बोल जिनके
पास ठहरे हैं

ज़िन्दगी अपनी हुई है
मैल कानों की ।
 
देखते जब शब्द के
बारीक छिलके खोल
देश लगता रह गया
बनकर महज भूगोल

एक साजिश है खुली
ऊँचे मकानों की ।