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ज़िन्दगी ने खुद सँवारा है मुझे / मृदुला झा
Kavita Kosh से
हर बशर बेहद ही प्यारा है मुझे।
छंद, लय, अनुप्रास बन-बन कर कभी,
और लोरी बन दुलारा है मुझे।
बुजदिलों की भाँति रोता था कभी,
राहे-हिम्मत ने उबारा है मुझे।
जा फँसा था ज़ालिमों की फांस में,
मुक्ति का दे मंत्र तारा है मुझे।
भूल पाऊँगी नहीं इस स्नेह को,
थपकियाँ दे खुद दुलारा है मुझे।