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ज़िन्दगी हमसे जी नहीं जाती / धीरेन्द्र सिंह काफ़िर
Kavita Kosh से
ज़िंदगी इस तरह गुज़ारी है
सिलसिला ख़त्म साँस जारी है
दर्द ग़म अश्क और मायूसी
तेरी उम्मीद सब पे भारी है
मैं ने ढूँढी तो मुख़्तसर पाई
दुनिया जो दिखती इतनी सारी है
आँखें ढो कर के थक गई होंगी
नींद का बोझ सच में भारी है
खेल खेला था उम्र का लेकिन
मौत जीती हयात हारी है