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जा मुख देखन को नितही रुख / भारतेंदु हरिश्चंद्र
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जा मुख देखन को नितही रुख
दूतिन दासिन को अवरेख्यो ।
मानी मनौतीहू देवन को
'हरिचंद' अनेकन जोतिस लेख्यो ।
सो निधि रूप अचानक ही मग में
जमुना जल जात मैं देख्यो ।
सोक को थोक मिट्यो अब आजु
असोक की छाँह सखी पिय पेख्यो ।