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जां सुलगती है--ग़ज़ल / मनोज श्रीवास्तव

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रात भर शमा से गुल हटाए रखिए
वहमे-सुबह का ख़याल बनाए रखिए

जाँ सुलगती है लफ़्ज़ों की कामयाबी पर
लफ्ज़ हवाओं की तरह बहाए रखिए

ख़ुदकुशी से पहले आग बार-बार परखिए
हर धुएँ का सैलाब आग नहीं, वहम भगाए रखिए

यार, पैसे ना उड़ा इन फ़िज़ूल साँसों पर
वात महंगे हुए, आह भी थामे रखिए