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जाना बहुत जरूरी है / रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’

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जीवन के इस सम्मेलन में आना तो मज़बूरी है ।
आए हैं तो कुछ कह-सुनकर जाना बहुत ज़रूरी है ।।

जाने कितने स्वप्न सँजोए,
जाने कितने रंग भरे ।
ख़्वाब अधूरे हुए न पूरे,
ठाठ-बाट रह गए धरे ।

सरदी गरमी ,धूप छाँव को, पाना तो मज़बूरी है ।
आए हैं तो कुछ कह-सुनकर जाना बहुत ज़रूरी है ।।

जितना आगे क़दम बढ़ाया,
मंज़िल उतनी दूर हो गई ।
समरसता की कल्पनाएँ सब,
थककर चकनाचूर हो गईं ।

घिसी-पिटी-सी रीत निभाना जन-जन की मज़बूरी है ।
आए हैं तो कुछ कह-सुनकर जाना बहुत ज़रूरी है ।।
 
बचपन बीता गई जवानी,
सूरज ढलने वाला है ।
चिर यौवन को लिए हुए मन,
सबका ही मतवाला है ।

दरवाज़ों की दस्तक को, पढ़ पाना बहुत ज़रूरी है ।
आए हैं तो कुछ कह-सुनकर जाना बहुत ज़रूरी है ।।