भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जाने कहाँ गए वो दिन / हसरत जयपुरी
Kavita Kosh से
जाने कहाँ गए वो दिन
कहते थे तेरी राह में नजरों को हम बिछाएँगे
चाहे कहीं भी तुम रहो
चाहेंगे तुम को उम्र भर तुमको ना भूल पाएँगे
मेरे क़दम जहाँ पड़े सजदे किए थे यार ने
मुझको रुला-रुला दिया जाती हुई बहार ने
अपनी नजर में आज कल दिन भी अन्धेरी रात है
साया ही अपने साथ था साया ही अपने साथ है
जाने कहाँ गए वो दिन
कहते थे तेरी राह में नजरों को हम बिछाएँगे
कल खेल में हम हो न हों गर्दिश में तारे रहेंगे सदा
ढूँढ़ोगे तुम, ढूँढ़ेंगे वो, पर हम तुम्हारे रहेंगे सदा
रहेंगे यहीं अपने निशाँ, इसके सिवा जाने कहाँ
जी चाहे जब हमको आवाज़ दो, हम हैं वहीं, हम थे जहाँ
हम हैं वहीं, हम थे जहाँ इसके सिवा जाना कहाँ